तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो तो तुम्हें अवश्य परमेश्वर की आज्ञा पालन करनी चाहिए, सत्य को अभ्यास में लाना चाहिए और अपने सभी कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए। इसके अलावा, तुम्हें अनुभव की जाने वाली बातों को अवश्य समझना चाहिए। यदि तुम केवल व्यवहार किए जाने, अनुशासित किए जाने और न्याय का ही अनुभव करते हो, यदि तुम केवल परमेश्वर का आनन्द लेने में ही समर्थ हो, परन्तु जब परमेश्वर तुम्हें अनुशासित कर रहा हो या तुम्हारे साथ व्यवहार कर रहा हो तो तुम उसका अनुभव करने में असमर्थ हो, तो यह स्वीकार्य नहीं है। शायद शुद्धिकरण के इस उदाहरण में, तुम अपनी स्थिति बनाए रखने में समर्थ हो। तब भी यह पर्याप्त नहीं है, तुम्हें अवश्य आगे बढ़ना चाहिए। परमेश्वर से प्रेम करने का पाठ अंतहीन है, और इसका कभी भी कोई अंत नहीं है। लोग परमेश्वर पर विश्वास करने की बात को बहुत ही साधारण समझते हैं, परन्तु एक
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