
व्यवस्था के युग में परमेश्वर का नाम यहोवा था
"यहोवा" वह नाम है जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोग) का परमेश्वर जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन को मार्गदर्शन दे सकता है। इसका अर्थ है वह परमेश्वर जिसके पास बड़ी सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है। ... अर्थात्, केवल यहोवा ही इस्राएल के चुने हुए लोगों का परमेश्वर, इब्राह
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वह कार्य जो यहोवा ने इस्राएलियों पर किया, उसने मानवजाति के बीच पृथ्वी पर परमेश्वर के मूल स्थान को स्थापित किया जो कि वह पवित्र स्थान भी था जहाँ वह उपस्थित रहता था। उसने अपने कार्य को इस्राएल के लोगों तक ही सीमित रखा। आरम्भ में, उसने इस्राएल के बाहर कार्य नहीं किया; उसके बजाए, उसने ऐसे लोगों को चुना जिन्हें उसने अपने कार्यक्षेत्र को सीमित रखने के लिए उचित पाया। इस्राएल वह जगह है जहाँ परमेश्वर ने आदम और हव्वा की रचना की, और उस जगह की धूल से यहोवा ने मनुष्य को बनाया; यह स्थान पृथ्वी पर उसके कार्य का आधार बन गया। इस्राएली, जो
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परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के शुरूआती कार्य को सीधे तौर पर आत्मा के द्वारा किया गया था, और देह के द्वारा नहीं। फिर भी, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के अंतिम कार्य को देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया है, और आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर नहीं किया गया है। माध्यमिक चरण के छुटकारे के कार्य को भी देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया था। समूचे प्रबंधकीय कार्य के दौरान, सबसे महत्वपूर्ण कार्य है शैतान के प्रभाव से मनुष्य का उद्धार। मुख्य कार्य है भ्रष्ट मनुष्य पर सम्पूर्ण विजय, इस प्रकार यह जीते गए मनुष्य के हृदय में परमे
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अनुग्रह का युग: परमेश्वर के कार्य का लक्ष्य और महत्व
परमेश्वर के अति-उत्कृष्ट वचन:
अनुग्रह के युग में, मनुष्य पहले से ही शैतान की भ्रष्टता से गुज़र चुका था, और इसलिए समस्त मानवजाति को छुटकारा देने के कार्य हेतु, अनुग्रह की भरमार, अनन्त सहनशीलता और धैर्य, और उससे भी बढ़कर, मानवजाति के पापों का प्रयाश्चित करने के लिए पर्याप्त बलिदान की आवश्यकता थी ताकि इसके प्रभाव तक पहुँचा जा सके। अनुग्रह के युग में मा
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अनुग्रह का युग: परमेश्वर के कार्य की सामग्री और परिणाम
परमेश्वर के अति-उत्कृष्ट वचन:
अनुग्रह के युग में, यीशु संपूर्ण पतित मानवजाति (सिर्फ इस्राएलियों को नहीं) को छुटकारा दिलाने के
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अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य का आवश्यक ज्ञान
धर्मोपदेश और संगति
यदि हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उन वचनों पर ईमानदारी से विचार कर पाएँ जो अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य के महत्व और सार को प्रकट करते हैं, तो हम पूरी तरह से यह स्वीकार कर पाएँगे कि अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु&n
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यीशु अनुग्रह के युग के समस्त कार्य का प्रतिनिधित्व करता है; वह देह में देहधारी हुआ और उसे सलीब पर चढ़ाया गया, और उसने भी अनुग्रह के युग का उद्घाटन किया। छुटकारे के कार्य को पूरा करने, व्यवस्था के युग का अंत करने और अनुग्रह के युग का आरम्भ करने के लिए उसे सलीब पर चढ़ाया गया था, और इसलिए उसे “सर्वोच्च सेनापति,” “पाप बलि,” और “छुटकारा दिलाने वाला” कहा गया। इस प्रकार यीशु के कार्य की विषय सूची यहोवा के कार्य से अलग थी, यद्यपि वे सैद्धान्तिक रूप से एकही थे। यहोवा ने
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परमेश्वर ने अनुग्रह के युग में यीशु के नाम को क्यों अपनाया?
जब यीशु ने अपनी सेवकाई आरंभ की, तो पवित्र आत्मा ने यीशु के नाम की गवाही देनी आरंभ कर दी, और यहोवा का नाम अब और नहीं बोला जा रहा था, और इसके बजाय पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम से नया कार्य आरंभ किया था। जो यीशु में विश्वास करते थे उन लोगों की गवाही, यीशु मसीह
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अनुग्रह के युग के कार्य में, यीशु परमेश्वर था जिसने मनुष्य को बचाया। उसका स्वरूप अनुग्रह, प्रेम, करुणा, सहनशीलता, धैर्य, विनम्रता, देखभाल और सहिष्णुता, और उसने जो इतना अधिक कार्य किया वह मनुष्य का छुटकारा था। और जहाँ तक उसका स्वभाव है, वह करुणा और प्रेम का था, और क्योंकि वह करुणामय और प्रेममय था, इसलिए उसे मनुष्य के लिए सलीब पर ठोंक दिया जाना था, ताकि यह दिखाया जाए कि परमेश्वर मनुष्य से उसी प्रकार
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मैं पहली बार मनुष्यों के बीच छुटाकारे के युग के दौरान आया था। निस्संदेह मैं यहूदी परिवार के बीच आया; इसलिए परमेश्वर को पृथ्वी पर आते हुए देखने वाले सबसे पहले यहूदी लोग थे। मैंने इस कार्य को व्यक्तिगत रूप से किया उसका कारण यह था क्योंकि मैं छुटकारे के अपने कार्य में पापबलि के रूप में अपने देहधारी देह का उपयोग करना चाहता था। इसलिए मुझे सबसे पहले देखने वाले अनुग्रह के युग के यहूदी थे। वह पहली बार था कि मैंने देह में कार्य किया।
"जब परमेश्वर की बात आती है, तो तुम्हारी समझ क्या होती है" से
इस्राएल मे
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