
संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:
"तब स्वर्ग का राज्य न दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं।...परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया।...आधी रात को धूम मची : 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो।' तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं।......और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चली गईं और द्वार बन्द किया गया" (मत्ती 25:1,4,6-7,10)।
"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)।
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परमेश्वर के अति-उत्कृष्ट वचन:
अंत के दिनों का कार्य, सभी को उनके स्वभाव के आधार पर पृथक करना, परमेश्वर की प्रबंधन योजना का समापन करना है, क्योंकि समय निकट है और परमेश्वर का दिन आ गया है। परमेश्वर उन सभी को जिन्होंने उसके राज्य में प्रवेश कर लिया है अर्थात्, वे सभी लोग जो अंत तक उसके वफादार रहे हैं, स्वयं परमेश्वर के युग में ले जाता है। हालाँकि, जब तक स्वयं परमेश्वर का युग नहीं आ जाता है तब तक परमेश्वर जो कार्य करेगा वह मनुष्य के कर्मों को देखना या मनुष्य जीवन के बारे में पूछताछ करना नहीं, बल्कि उनके विद्रोह का न्याय करना है, क्योंकि परमेश्वर उन सभी को शुद्ध करेगा जो उसके सिंहासन के सामने आते हैं। वे
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जब आप बड़े लाल अजगर के पतन के क्षण में परमेश्वर के लिए विजयी गवाही देते हैं तो मुख्य रूप से क्या व्यक्त होता है? जो मुख्य रूप से प्रकट होता है वह है: आपके पास परमेश्वर की सच्ची आज्ञाकारिता है, आप परमेश्वर के प्रति वफ़ादार हैं, आपका हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की ओर मुड़ गया है, आपका हृदय परमेश्वर से प्रेम करता है, आप स्वयं को परमेश्वर के लिए व्यय करते हैं, आप परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं; केवल इस तरह के लोगों ने ही वास्तव में बड़े लाल अजगर की ओर से अपना मुँह मोड़ लिया है और शैतान पर विजय पायी है , केवल यही विजेताओं की गवाही है। ऐसा कोई जो डरपोक है और बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का सामना करते समय अपना कर्तव्य करने का साहस नहीं करता है—क्या वह कोई ऐसा है जो शैतान पर विजय प्राप्त कर
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विजेता क्या होता है? एक विजेता में सत्य की कौन-सी वास्तविकता होनी चाहिए? इस बात को साफ़ तौर पर कोई नहीं समझता। इंसानी नज़रिए से देखें तो, अगर हम प्रभु के लिये मेहनत करें, उनके नाम को थामे रहें तो हम आख़िर में विजेता बन जाएंगे। लेकिन यह पूरी तरह से गलत है। आइये देखें विजेता बनने के बारे में परमेश्वर क्या कहते हैं, जैसा कि प्रकाशितवाक्य में लिखा है, "ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4-5)। और आइये देखें
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परमेश्वर के अति-उत्कृष्ट वचन:
आरंभ में परमेश्वर विश्राम कर रहा था। उस समय पृथ्वी पर कोई मनुष्य या अन्य कुछ भी नहीं था, और परमेश्वर ने किसी भी तरह का कोई कार्य नहीं किया था। परमेश्वर ने अपने प्रबंधन के कार्य को केवल तब आरंभ किया जब एक बार मानवजाति अस्तित्व में आ गई और एक बार जब मानव जाति भ्रष्ट कर दी गई। इसके बाद से, परमेश्वर ने अब और विश्राम नहीं किया बल्कि इसके बजाय उसने स्वयं को मनुष्यजाति के बीच व्यस्त रखना आरंभ कर लिया। यह मनुष्यों की भ्रष्टता की वजह से था कि परमेश्वर को उसके विश्राम से उठा दिया गया, और यह प्रधान स्वर्गदूत के विद्रोह के कारण भी था कि जिसने परमेश्वर को उसके विश्राम से उठा दिया। यदि परमेश्वर शैतान को परास्त नहीं करता और मानव जाति को नहीं बचाता है, जो की भ्रष्ट हो चुकी है, तो परमेश्वर पुनः कभी भी विश्राम में प्रवेश नह
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परमेश्वर के अति-उत्कृष्ट वचन:
मेरी सम्पूर्ण प्रबन्धन योजना, ऐसी योजना जो छः हज़ार सालों तक फैली हुई है, तीन चरणों या तीन युगों को शामिल करती हैः आरंभ में व्यवस्था का युग; अनुग्रह का युग (जो छुटकारे का युग भी है); और अंत के दिनों में राज्य का युग। प्रत्येक युग की प्रकृति के अनुसार मेरा कार्य इन तीनों युगों में तत्वतः अलग-अलग है, परन्तु प्रत्येक चरण में यह मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप है—या बल्कि, अधिक स्पष्ट कहें तो, यह उन छलकपटों के अनुसार किया जाता है जो शैतान उस युद्ध में काम में लाता है जो मैं उसके विरुद्ध शुरू करता हूँ। मेरे कार्य का उद्धेश्य शैतान को हराना, अपनी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को व्यक्त
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परमेश्वर के अति-उत्कृष्ट वचन:
इस्राएल में यहोवा के कार्य का महत्व, उद्देश्य, और चरण, पूरी पृथ्वी पर उसके कार्य का सूत्रपात करने के लिए थे, जो, इस्राएल को इसका केन्द्र लेते हुए, धीरे-धीरे अन्य जाति-राष्ट्रों में फैलते हैं। यही वह सिद्धांत है जिसके अनुसार वह तमाम विश्व में कार्य करता है—एक प्रतिमान स्थापना करना, और तब तक उसे फैलाना जब तक कि विश्व के सभी लोग उसके सुसमाचार को ग्रहण न कर लें। प्रथम इस्
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परमेश्वर के अति-उत्कृष्ट वचन:
आरंभ में मानवजाति के सृजन के बाद, ये इस्राएली ही थे जिन्होंने कार्य के आधार के रूप में काम किया, और सम्पूर्ण इस्राएल पृथ्वी पर यहोवा के कार्य का आधार था। यहोवा का कार्य मनुष्य का सीधे नेतृत्व करना और व्यवस्थाओं की स्थापना करके मनुष्य की चरवाही करना था ताकि मनुष्य एक सामान्य जीवन जी सके और पृथ्वी पर सामान्य रूप से यहोवा की आराधना कर सके। व्यवस्था के युग में परमेश्वर एक ही था जिसे मनुष्य के द्वारा न तो देखा जा सकता था और न ही छुआ जा सकता था। वह केवल शैतान द्वारा पहले भ्रष्ट
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यदि हम व्यवस्था के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के महत्व और सार को प्रकट करने वाले उसके वचनों पर ईमानदारी से चिंतन कर सकें, तो हम पूरी तरह से यह पहचानने में सक्षम हो जाएँगे कि व्यवस्था के युग में परमेश्वर का कार्य मनुष्य के निर्माण के बाद मानवजाति के मार्गदर्शन का आरंभिक कार्य था। यहोवा व्यवस्था के युग में शाश्वत, अद्वितीय सच्चा परमेश्वर था, जो इस्राएलियों के सामने प्रकट हुआ, जिसने मिस्र के राजा के नियंत्रण की अधीनता और दासता से उन्हें बाहर निकाला था, और फिर उसने इस्राएलियों को व्यवस्थाएँ और आज्ञाएँ जारी की, इस प्रकार परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से मानवजाति के जीवन के मार्गदर्शन की शुरुआत की।
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व्यवस्था के युग के दौरान, यहोवा ने मूसा के लिए अनेक आज्ञाएँ निर्धारित की कि वह उन्हें उन इस्राएलियों के लिए आगे बढ़ा दे जिन्होंने मिस्र से बाहर उसका अनुसरण किया था। ये आज्ञाएँ यहोवा द्वारा इस्राएलियों को दी गई थीं, और उनका मिस्र के लोगों से कोई संबंध नहीं था; वे इस्राएलियों को नियन्त्रण में रखने के अभिप्राय से थीं। परमेश्वर ने उनसे माँग करने के लिए इन आज्ञाओं का उपयोग किया। उन्होंने सब्त का पालन किया या नहीं, उन्होंने अपने माता पिता का आदर किया या नहीं, उन्होंने मूर्तियों की आराधना की या नहीं, इत्यादि: यही वे सिद्धांत थे जिनसे उनके पापी या धार्मिक होना आँकलन किया जाता था। उनमें से, कुछ ऐसे थे जो यहोवा की आग से त्रस्त थे, कुछ ऐसे थे जिन्हें पत्थऱ मार
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