पिछले दो युगों के कार्यों में से एक चरण का कार्य इस्राएल में सम्पन्न हुआ; दूसरा यहूदिया में हुआ। सामान्य तौर पर कहा जाए तो, इस कार्य के किसी भी चरण ने इस्राएल को नहीं छोड़ा; कार्य ये वे चरण थे जो आरंभ में चुने गए लोगों के बीच किए गए थे। इस प्रकार, इस्राएलियों के दृष्टिकोण से, यहोवा परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है। यहूदिया में यीशु के कार्य के कारण और सूली पर चढ़ाए जाने के उसके कार्य की पूर्णता के कारण, यहूदियों के दृष्टिकोण से, यीशु यहूदियों का मुक्तिदाता है। वह केवल यहूदियों का राजा है, अन्य लोगों का राजा नहीं है; वह अंग्रेजों को छुटकारा देने वाला प्रभु नहीं
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अंतिम दिनों में, जो कार्य परमेश्वर को करना था, उसे करने और अपने वचनों की सेवकाई करने के लिए परमेश्वर ने देहधारण किया। वह मनुष्यों के मध्य उन लोगों को सिद्ध बनाने के लक्ष्य के साथ कार्य करने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आया, जो लोग उसके हृदय के समीप थे। सृष्टि से लेकर आज तक अन्तिम दिनों में वह मात्र यह कार्य करता है। मात्र अन्तिम दिनों के दौरान ही ऐसे विशाल स्तर का कार्य करने के लिए परमेश्वर ने देहधारण किया था। यद्यपि वह ऐसी कठिनाइयों को सहन करता है, जिन्हें सहन करने में लोगों को कठिनाई होगी, यद्यपि उसमें, एक महान परमेश्वर होते हुए भी एक साधारण मनुष्य बनने की दीनता थी, उसके कार्य के किसी भी पहलू को विलम्बित नहीं किया गया है और कम से कम उसकी योजना को भ्रान्ति में नहीं डाला गया है। वह अपनी वास्तविक योजना के अनुसार ही कार्य कर रहा है। इस देहधारण के उद्देश्यों में से एक उद्देश्य लोगों क
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परमेश्वर के वचनों की निर्लज्जतापूर्वक व्याख्या करने के योग्य होने का अर्थ यह नहीं है कि वास्तविकता पर तुम्हारा अधिकार है—बातें इतनी भी साधारण नहीं है जितनी तुम ने कल्पना की थी। वास्तविकता पर तुम्हारा अधिकार है या नहीं, यह उस बात पर आधारित नहीं है, जो तुम कहते हो, अपितु यह उस बात पर आधारित है, जो तुम जीते हो। जब परमेश्वर के वचन तुम्हारा जीवन और तुम्हारी स्वाभाविक अभिव्यक्ति बन जाती है, मात्र इसे ही वास्तविकता गिना जाता है और मात्र इसे ही तुम्हारे ज्ञान पर अधिकार रखने और तुम्हारी वास्तविक कद–काठी के रूप में गिना जाता है। तुम्हें लम्बे समय तक परीक्षा का सामना करना अनिवार्य है, और तुम्हें उस समानता
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राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने और संपूर्ण युग के लिये काम करने की ख़ातिर अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों से बातचीत कर सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, उसकी बुद्धि और चमत्कार को जान सके। उसने यह कार्य इसलिए किये ताकि वह मनुष्यों को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और ख़त्म करने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल कर सके। वचन के युग में वचन को उपयोग करने का यही वास्तविक अर्थ है। वचन के द्वारा परमेश्वर के कार्यों को, परमेश्वर के स्वभाव को मनुष्य के सार और इस राज्य में प्रवेश करने के लिए मनुष्य को क्या कर
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बहुत पहले ही, उपदेशों में उचित कलीसिया जीवन होने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया था। तो ऐसा क्यों है कि कलीसिया के जीवन में अभी तक सुधार नहीं हुआ है, और अभी भी वही पुरानी बात है? क्यों जीवन का एक बिल्कुल नया और अलग तरीका नहीं है? क्या नब्बे के दशक के एक व्यक्ति का एक बीते युग के सम्राट की तरह रहना उचित होगा? यद्यपि भोजन और पेय शायद ही कभी पिछले युग में चखे गए व्यंजन होंगे, कलीसिया की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। यह पुरानी मदिरा को एक नई बोतल में डालने की तरह है। तो परमेश्वर के इतना कहने का क्या लाभ है? अधिकांश जगहों पर कलीसिया बिल्कुल भी नहीं बदला है। मैंने इसे अपनी आँखों से देखा है और यह मेरे ह्रदय में स्पष्ट है; यद्यपि मैंने स्वयं के लिए कलीसिया के जीवन का अनुभव नहीं किया है, मैं कलीसिया सभाओं की परिस्थितियों को बहुत अच्छे से जानता हूँ। उन्होंने बहुत प्रगति नहीं की है। यह फिर
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परमेश्वर वास्तविकता का परमेश्वर है: उसका समस्त कार्य वास्तविक है, सभी वचन जिन्हें वह कहता है वास्तविक हैं, और सभी सच्चाईयाँ जिन्हें वह व्यक्त करता है वास्तविक हैं। हर चीज़ जो उसके वचन नहीं हैं वे खोखले, अस्तित्वहीन, और अनुचित हैं। आज, पवित्र आत्मा परमेश्वर के वचनों में लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए है। यदि लोगों को वास्तविकता में प्रवेश की खोज करनी है, तो उन्हें अवश्य वास्तविकता को ढूँढ़ना, और वास्तविकता को जानना चाहिए, जिसके बाद उन्हें अवश्य वास्तविकता का अनुभव करना चाहिए, और वास्तविकता को जीना चाहिए। लोग जितना अधिक वास्तविकता को जानते हैं, वे उतना ही अधिक यह बताने में समर्थ होते हैं कि दूसरों के वचन वास्तविक हैं या नहीं; लोग जितना अधिक वास्तविकता को जानते हैं, उन
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हर व्यक्ति को परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की संभावना है, इसलिए सभी को समझना चाहिए कि परमेश्वर की कौन सी सेवा सबसे ज्यादा परमेश्वर के प्रयोजनों के अनुरूप है। अधिकांश लोगों को यह नहीं पता है कि परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है और उन्हें पता नहीं है कि क्यों परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि अधिकांश लोगों को परमेश्वर के कार्य की या परमेश्वर की प्रबंधन योजना के उद्देश्य की समझ नहीं है। वर्तमान तक, अधिकांश लोग अभी भी यह सोचते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करना स्वर्ग जाने और उनकी अपनी आत्माओं को बचाने के बारे में है। उनको अभी भी परमेश्वर में विश्वास करने के विशेष महत्व के बारे में कु
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वो क्या है जो मनुष्य ने प्राप्त किया है जब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर में विश्वास किया? तुमने परमेश्वर के बारे में क्या जाना है? परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण तुम कितने बदले हो? अब तुम सभी जानते हो कि परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास आत्मा की मुक्ति और देह के कल्याण के लिए ही नही है, और न ही यह उसके जीवन को परमेश्वर के प्रेम से सम्पन्न बनाने के लिए,इत्यादि है। जैसा यह है, यदि तुम परमेश्वर को सिर्फ़ देह के कल्याण के लिए या क्षणिक आनंद के लिए प्रेम करते हो, तो भले ही, अंत में, परमेश्वर
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परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य, मनुष्यों में कैसा प्रभाव प्राप्त किया जाना है, और मनुष्य के प्रति परमेश्वर की इच्छा क्या है,को समझना यही सब बातें हर उस व्यक्ति को उपार्जित करनी चाहिए जो परमेश्वर का अनुसरण करता है। अभी सभी मनुष्यों में जिस चीज का अभाव है, वह है परमेश्वर के कार्य का ज्ञान। मनुष्य न बूझता है और न ही समझता है कि वास्तव में कौन सी चीज मनुष्य में परमेश्वर के कर्म, परमेश्वर के समस्त कार्य को, और सृष्टि की रचना के बाद से परमेश्वर की इच्
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परमेश्वर के कार्य और वचन का अभिप्राय तुम लोगों के स्वभाव में एक परिवर्तन लाना है; उसका उद्देश्य मात्र यह नहीं है कि तुम लोग उन्हें समझो या पहचानो और उन्हें अंत तक रखे रहो। उस व्यक्ति के समान जिसके पास प्राप्त करने की योग्यता है, तुम लोगों को परमेश्वर के वचन को समझने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के अधिकतर वचन मानवीय भाषा में लिखे गए हैं जो समझने में बहुत आसान हैं। उदाहरण के लिए, तुम लोग जान सकते हो जो परमेश्वर तुमसे चाहता है कि तुम समझो और उसका अभ्यास करो; यह कुछ ऐसा है जिसे एक उचित व्यक्ति, जिसके पास समझने की क्षमता है, उसके करने योग्य होना चाहिए। परमेश्वर अब जो कहता है वह विशेष रूप से
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