परमेश्वर के वचनों की निर्लज्जतापूर्वक व्याख्या करने के योग्य होने का अर्थ यह नहीं है कि वास्तविकता पर तुम्हारा अधिकार है—बातें इतनी भी साधारण नहीं है जितनी तुम ने कल्पना की थी। वास्तविकता पर तुम्हारा अधिकार है या नहीं, यह उस बात पर आधारित नहीं है, जो तुम कहते हो, अपितु यह उस बात पर आधारित है, जो तुम जीते हो। जब
परमेश्वर के वचन तुम्हारा जीवन और तुम्हारी स्वाभाविक अभिव्यक्ति बन जाती है, मात्र इसे ही वास्तविकता गिना जाता है और मात्र इसे ही तुम्हारे ज्ञान पर अधिकार रखने और तुम्हारी वास्तविक कद–काठी के रूप में गिना जाता है। तुम्हें लम्बे समय तक परीक्षा का सामना करना अनिवार्य है, और तुम्हें उस समानता
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